हम सभी पाप नहीं करना चाहते हैं पर निरंतर पाप होती जाती है, पर यह पाप क्यों होती है, पाप को लेकर हम सभी बेचैन हैं कि हम पाप ना करें ,पर यह पाप क्यों होती है और हम कुछ समझ नहीं पाते हैं,और हम सभी यह भी जानते हैं वचन कहता है पाप की मजदूरी तो मृत्यु है, और हम सभी पाप से कैसे बच सकते हैं,आईऐ हम सभी बचन के माध्यम से सीखते और समझते हैं...
उत्पत्ति - अध्याय 4
1जब आदम अपनी पत्नी हव्वा के पास गया तब उसने गर्भवती हो कर कैन को जन्म दिया और कहा, मैं ने यहोवा की सहायता से एक पुरूष पाया है।
2 फिर दुसरे पुत्र को भी जन्म दिया, और दूसरे पुत्र तो भेड़-बकरियों का चरवाहा बन गया, परन्तु कैन भूमि की खेती करने वाला किसान बना।
3 कुछ दिनों के पश्चात कैन यहोवा के पास भूमि की उपज में से कुछ भेंट ले आया।
4 और दुसरे पुत्र ने भी अपनी भेड़-बकरियों के कई एक पहिलौठे बच्चे भेंट चढ़ाने ले आया और उनकी चर्बी भेंट चढ़ाई; तब यहोवा ने दुसरे पुत्र और उसकी भेंट को तो ग्रहण किया,
5 परन्तु कैन और उसकी भेंट को उसने ग्रहण न किया। तब कैन अति क्रोधित हुआ, और उसके मुंह पर उदासी छा गई।
6 तब यहोवा ने कैन से कहा, तू क्यों क्रोधित हुआ? और तेरे मुंह पर उदासी क्यों छा गई है?
7 यदि तू भला करे, तो क्या तेरी भेंट ग्रहण न की जाएगी? और यदि तू भला न करे, तो पाप द्वार पर छिपा रहता है, और उसकी लालसा तेरी और होगी, और तू उस पर प्रभुता करेगा।
खण्डन:-
इस वचन से आप क्या सीखें,
"प्रियों जब हम प्रार्थना करते हैं ,और प्रार्थना का उत्तर नहीं आने का रीजन मात्र एक ही है ,वह पाप है, अगर आप नित्य दिन परमेश्वर के वचन से अलग होकर अन्य कामों में व्यस्त होकर पाप करते हैं जो पाप हमारी और लालसा लगाए रखना है वह आकर हमें चारो और से घेर लेता है, जिस कारण हमारी प्रार्थना परमेश्वर तक सही से पहुंच नहीं पता है, अगर कोई भेंट अर्पित करते हैं तो परमेश्वर तक ग्रहण नहीं हो पता ,इसलिए की परमेश्वर ने पहले ही कह चुका है पाप की लालसा तुझ पर होगा तुझे उसे पर प्रभुता करनी होगी,
इसलिए हमेशा परमेश्वर के वचन में अपने मन को लगाए रखें..
परमेश्वर आप सभी को आशीष दे । ("आमीन") )